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वह ज़िंदगी भी क्या खूब थी !

                     वह ज़िंदगी भी क्या खूब थी !                                       हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले                                       बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। #गालिब  चौखंडी स्तूप का पार्क  उन दिनो को बीते एक जमाना गुजर गया फिर भी रह रह के उन फाकामस्ती भरे दिनो की याद आ ही जाती है । वह भी क्या दिन थे जब हर चीज मे रूमानियत भरी हुई थी । बीसवी सदी जा रही थी इकीसवी आ रही थी । घरो मे दूरदर्शन के साथ केबल चैनल और लैंडलाइन फोन पाहुचने लगे थे । यह वो जमाना था टीबी बी एस एन  एल भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी हुआ करती थी । लैंडलाइन का आना ग्रामीण कस्बो मे नई कहानियों और नए रिश्तो को जन्म दे रहा था ।  दुनिया बदल रही थी इस बदलती दुनिया मे हम भी चुनार की गलियों मे साइकिल से ट्यूशन और स्कूल के चक्कर लगा रहे थे । मिडिल स्कूल तक पैदल जाने वाला अचानक साइकिल पर आ गया था इसलिए चाल मे एक अजीब ही बदलाव आ गया था । यह बॉबी देयोल का जमाना था । जब लंबी जुलफ़े  एक फैशन हुआ करती थी । इनके बीच घर वालो के कठोर अनुशासन के कारण मिलिट्री कट मे घूमा करते थे ।

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